अहिच्छत्र – उत्तर प्रदेश के बरेली जिले मे स्थित यह नगर ईसा
पूर्व छठी शताब्दी मे उत्तरी पांचाम की राजधानी थी । यहाँ के उत्खनन से प्राप्त
सिक्कों के आधार पर यह ज्ञात होता है की यह नगर प्रसिद्ध भारतीय व्यापारिक एवं
सांस्कृतिक केन्द्रो मे से एक था । मौर्य युग मे मूर्तिकला के प्रसिद्ध केंद्र के
रूप मे यहा पर अशोक ने अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया था । यहाँ के
प्रसिद्ध खंडहरो मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण ढूह का स्तूप है,
जिसका आकार चक्की की तरह है और इसी वजह से स्थानीय लोग इसे पिसनहारी का छत्र कहते
है । गुप्तों के उदय से पूर्व यह नगरी नागवंशी राजाओं की शक्ति के केंद्र के रूप
मे भी प्रसिद्ध थी ।
अजमेर- राजा अजयदेव चौहान द्वारा 1100 मे
स्थापित अजमेर नगर हिन्दू, मुसलमान, जैन, पारसी एवं ईसाइयों का समन्वय क्षेत्र माना जाता है
। 1192 मे कुतुबद्दीन ऐबक ने यहाँ अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण
करवाया था । इसके अलावा अजमेर मे तारागढ़
का किला, हिन्दुओ का पवित्र पुष्कर तीर्थ, जैनियों का रथवाला मंदिर
आदि भी स्थित है ।
अजन्ता- महाराष्ट्र प्रांत के औरंगाबाद जिले मे स्थित
अजन्ता मे पर्वत को काटकर 29 गुफाएँ बनायी गयी है जिनकी छ्तों और दीवारों पर
उत्कृष्ट चित्रकारियाँ की गयी है । वर्तमान मे यहाँ केवल छ: गुफाओं पहली,
दूसरी, नौवीं, दसवीं, सोलहवीं, सत्रहवीं के अवशेष प्राप्त होते है । 19वीं व
10वीं गुफाओं के चित्र पहली शताब्दी ई.पू. के है जबकि 16वीं व 17वीं गुफाओं के
चित्र गुप्त काल के है और पहली व दूसरी गुफाओं के चित्र सबसे बाद अर्थात सातवीं
सदी ई. मे बनाये गये है । यहाँ के एक चित्र मे पुलकेशिन-II को
एक फारसी दूत मण्डल का स्वागत करते हुए दिखाया गया है ।
आमेर- जयपुर के निकट स्थित यह स्थल कछवाहों की राजधानी के
रूप मे प्रसिद्ध है । मुगल सम्राट अकबर की पत्नी जोधाबाई इसी भूमि पर जन्मी थी ।
स्थापत्य कला के क्षेत्र मे यहाँ का किला सर्वाधिक लोकप्रिय है जिसमें हिन्दू एवं
मुगल शैली का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है ।
आगरा- उत्तर प्रदेश के इस प्रसिद्ध शहर की नीव दिल्ली के
सुल्तान सिकंदर लोदी द्वारा 1504 मे रखी गयी थी । कालान्तर मे मुगल सम्राटों ने
इसे अपनी राजधानी बनाया । अकबर द्वारा 1565 मे बनवाया गया लाल पत्थर का किला यहीं
पर स्थित है । शाहजहाँ द्वारा अपनी बेगम मुमताज़ महल की याद मे बनाया गया ताजमहल आज
भी आगरा की शान बनाये हुए है । इसके अतिरिक्त यहाँ की प्रसिद्ध इमारतों में अकबर
का मकबरा तथा जामा मस्जिद भी शामिल है ।
अयोध्या- सरयू नदी के किनारे स्थित भारत का यह प्राचीन नगर,
जिसकी गणना भारत की अन्य सात पवित्र नगरियों मे की जाती है,
रामायण काल मे कौशल देश की राजधानी के रूप मे प्रसिद्ध था । यही से धनदेव का एक
प्रस्तर लेख भी प्राप्त होता है जिसके आधार पर यह ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र
शुंग ने अयोध्या मे दो अवश्मेघ यज्ञों का अनुष्ठान किया था । इसके अलावा अयोध्या
गुप्तकाल में एक राजनीतिक एवं धार्मिक केंद्र के रूप मे भी प्रसिद्ध था ।
अमृतसर- सिक्खों का यह पवित्र तीर्थस्थल भारत के पंजाब
राज्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण शहर है । यह शहर सिक्खों के चौथे गुरु रामदास को
1577 मे मुगल सम्राट अकबर द्वारा दिया गया था । यहाँ पर स्थित विश्व प्रसिद्ध
स्वर्ण मंदिर कि नीव 1589 मे शेख मियां मीर ने डाली थी । 1919 मे घटित जालियांवाला
बाग हत्याकांड के कारण अमृतसर का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों पर सदा के लिए अंकित
हो गया ।
अनुराधापुर- बौद्ध ग्रन्थ महावंश के अनुसार अनुराधापुर श्रीलंका
कि प्राचीन राजधानी के रूप मे प्रसिद्ध था । यह नगर एक भारतीय सामन्त अनुरोध
द्वारा बसाया गया था । 250 ई.पू. मे अशोक ने यहा धुपाराम स्तूप का निर्माण करवाया
और इसी स्तूप मे उसने पुरी से लाये गये महात्मा बुद्ध के एक दांत को रखवाया था ।
धूपाराम स्तूप के अतिरिक्त यहाँ दुत्तुजेमुनु द्वारा निर्मित रुआवेलिसिया और सावती
स्तूप तथा तिस्सा के पुत्र वातागामनिक द्वारा निर्मित अभयगिरि स्तूप उल्लेखनीय है
।
अंतरजीखेड़ा- उत्तर प्रदेश के एटा जिले मे स्थित अंतरजीखेड़ा एक
प्रागैतिहासिक स्थल के रूप मे माना जाता है । इसकी खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861-62 मे की थी । 1962 मे हुए
उत्खनन कार्यों के दौरान यहाँ जिन संस्कृतियों का पता चला,
उन्हे मुख्य रूप से चार स्तरों मे बांटा जा सकता है- 1. गैरिक
मृद् भाण्ड संस्कृति, 2. कृष्ण लोहित मृद् भाण्ड संस्कृति,
चित्रित थूसर मृद् भाण्ड संस्कृति एवं 4. काली चमकीली पालिश परम्परा संस्कृति
अरिकामेडु- अरिकामेडु पांडिचेरी से 3 किलोमीटर दूर कोरोमंडल तट
पर स्थित एक प्रसिद्ध एवं प्राचीन बन्दरगाह था, जिसके चीन,
मलाया और रोम से घनिष्ठ व्यापारिक सम्बंध थे । 1945 मे ह्वीलर एवं कैंसल ने यहाँ
खुदाई के दौरान अनेक रोमन बस्तियों के अवशेष प्राप्त किये थे । उत्खनन से प्राप्त
सिक्कों के आधार पर इस नगर का समय प्रथम शताब्दी ई.पू. से द्वितीय शताब्दी ई. तक
माना जाता है ।
अवन्ति- पुरानों मे अवन्तिका के नाम से प्रसिद्ध भारत का यह
प्राचीन नगर षोड्श महाजनपदों के अतिरिक्त भारत क अन्य चार बड़े नगरों मे शामिल था ।
इसके दो भाग थे- (1) उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी और (2) दक्षिण अवन्ति,
जिसकी राजधानी माहिष्मती थी । बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केंद्र होने के अलावा अवन्ति
ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में आर्थिक महत्व भी प्राप्त था ।
इन्द्रप्रस्थ- नई दिल्ली के निकट स्थित यह नगर महाभारत काल मे
कुरु राज्य की राजधानी के रूप मे प्रसिद्ध था । युधिष्ठिर ने यहाँ पर राजसूय यज्ञ
किया था । जातक ग्रंथो के अनुसार इस नगर की परिधि दो हजार मिल है । कुछ काल मे
यहाँ का राजा कोरव्य था ।
इन्दौर- मध्य प्रदेश का यह प्रसिद्ध शहर 18वीं शताब्दी मे
मल्हारराव होल्कर द्वारा स्थापित किया गया था । यहाँ पर होल्करों द्वारा निर्मित
प्रासाद विशेष उल्लेखनीय है ।
उज्जयिनी- प्राय:
अवन्तिका के नाम से जानी जाने
वाली यह नगरी मध्य प्रदेश के मालवा जिले मे स्थित है । बौद्ध ग्रन्थों एवं पुराणों
मे यह अन्य नामों से भी प्रसिद्ध है, जैसे बौद्ध ग्रन्थ मे इस नगरी को अच्युतगमी नाम से
जाना जाता था तथा महाभारत मे यह संदीपनि आश्रम के नाम से प्रख्यात थी । इसके
अतिरिक्त ‘पेरिप्लस ऑफ दी एरिथ्रियन सी’
नामक पुस्तक मे इस नगरी को ‘ओजिनी’ कहा गया है । छठी शताब्दी ई. पू. मे उज्जयिनी
उत्तरी अवन्ति की राजधानी थी । चण्ड प्रद्दोत यहाँ का शासक था । 5वीं शताब्दी ई.
पू. मे मगध नरेश शिशुनाग ने अवन्ति को मगध साम्राज्य मे सदा के लिए सम्मिलित कर
लिया । कालान्तर मे इन उज्जयिनी ने मौर्य युग मे अशोक एवं गुप्तयुग मे चन्द्रगुप्त
द्वितीय के शासन काल मे राजधानी होने का गौरव प्राप्त किया । स्थापत्य कला के
क्षेत्र में यहाँ पर निर्मित शिवालय आज भी प्रसिद्ध है ।
उदयपुर- झीलों की नगरी नाम से विख्यात उदयपुर की स्थापना
राजस्थान के दक्षिणी भाग मे 1567 ई. मे मेवाड़ के सूर्यवंशी सिसोदिया शासक महाराणा
उदयसिंह द्वारा की गयी थी । यहाँ पर स्थित महाराणा का सात मंज़िला राज प्रासाद अति
भव्य है । इसके अलावा 1651 ई. मे महाराणा जगत सिंह द्वारा बनवाया गया जगदीश मंदिर
उदयपुर के सबसे बड़े मंदिर के रूप मे विख्यात है ।
एरण- गुप्तकाल का यह प्रसिद्ध नगर मध्य प्रदेश में बेतवा
नदी के किनारे विन्ध्याचल पर्वतमाला के उत्तरी क्षेत्र के पठार पर स्थित है । यहां
से 5वीं शताब्दी के पंचमार्क सिक्कों के भारी भण्डार मिले है। इसके अलावा यहां से
गुप्तकालीन अभिलेख भी प्राप्त हुये है। कनिंघम द्वारा खोजे गये समुन्द्रगुप्त के
एक शिलालेख मे एरण को ‘एरकिण’ कहा गया है । इसी स्थान से ध्वस्त अवस्था मे
गुप्तकालीन मंदिरों-नृसिंह मंदिर, बराह मंदिर तथा विष्णु मंदिर के अवशेष मिलते है ।
एलिफैन्टा- मुम्बई से 7 मील दूर उत्तर-पूर्व में स्थित इस छोटे
से द्वीप का का प्राचीन नाम धारापुरी था । यहां कोंकण के मौर्यो की राजधानी थी ।
पुर्तगालियों ने इसे एलिफैन्टा नाम दिया । यहां की पहाड़ियो में निर्मित 5वीं-6वीं
शताब्दी की 5 गुफाएँ आज भी वहां की शान है । पत्थर की शिलाओं को काट कर बनाये गये
मंदिर मे महेश की मूर्ति, शिव-ताण्डव और शिव-पार्वती विवाह की मूर्तियां
अपनी सुन्दरता एवं कालात्मकता के लिए प्रसिद्ध है ।
एलोरा- महाराष्ट्र के औरंगाबाद मे लगभग 25 कि.मी. दूर
पश्चिम मे स्थित यह स्थान शैलकृत गुफा मंदिरो के लिए प्रसिद्ध है । इन शैलकृत
गुफाओं कि संख्या 34 है, जिनमे 1 से लेकर 12 तक बौद्धों कि गुफाएँ,
13 से 29 तक हिन्दुओं कि गुफाएँ एवं 30 से 34 तक जैनियों की गुफाये है । एलोरा की
गुफा मे 10 चैत्यगृह हैं जो अजन्ता चैत्यगृहों की तुलना मे आकार मे बड़े है ।
ऐहोल- कर्नाटक में बीजापुर में स्थित बादामी के निकट ऐहोल
नामक एक अत्यन्त प्राचीन स्थल है जहां 70 मंदिरों के अवशेष मिलते हैं और यही कारण
है कि ऐहोल ‘मंदिरों के नगर’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
इसी स्थल से लोकप्रिय चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का 634 ई. का जैन कवि
रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति के रूप में एक अभिलेख भी मिलता है जिसमें
पुलकेशिन-II कि सम्पूर्ण विजयगाथा वर्णित है । ऐहोल स्थित
चालुक्य कालीन मंदिरों मे तीन मंदिर- लड़खान मंदिर, दुर्गा मंदिर और
हच्चीमल्लीगुड्डी मंदिर अपना अलग ही महत्व रखते है । लाड़खान मंदिर वर्गाकार,
नीची तथा समतल छत वाला है । भवन कि हर दीवार लगभग 50 फुट लम्बी है । दुर्गा मंदिर लगभग छठी शताब्दी का
माना जाता है । अर्द्धवृत्ताकार ढांचे मे निर्मित इस मंदिर कि एक प्रमुख विशेषता
यह है कि यह मंदिर बौद्ध चैत्य को ब्राह्मण धर्म के मंदिर के रूप में उपयोग में
लाने का एक सफल प्रयोग है ।
कन्नौज- उत्तर प्रदेश में फतेहगढ़ एवं कानपुर के बीच
फर्रुखाबाद जिले में स्थित इस नगर का प्राचीन नाम कान्यकुब्ज था । यह उत्तर भारत
का सर्वाधिक प्राचीन नगर है ।
7वीं सदी में हर्षवर्धन ने इसे
अपनी राजधानी बनाया । हर्ष के ही काल में कन्नौज का वैभव यहाँ तक बढ़ गया कि कन्नौज
हिन्दू एवं बौद्ध विधा का केंद्र बिन्दु बना । प्रसिद्ध कवि राजशेखर यहाँ कि शान
थे ।
हर्ष के बाद कन्नौज पर आधिपत्य
जमाने के लिए पाल-प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शक्तियों में त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ ।
अन्तत: इस पर प्रतिहारों, गहड़वालों और राष्ट्रकूटों ने शासन किया ।
कन्याकुमारी- पदमपुराण में कन्यातीर्थ के नाम से सुप्रसिद्ध
भारत के सुदूर दक्षिण भाग में समुन्द्र तट पर बसा हुआ कन्याकुमारी को तमिल भाषा
में कन्नीकुमारी के नाम से जाना जाता है । यूनान लेखक इसे केप कोमारिया एवं चोल
इसे गंगैकोण्ड चोलपुरम् के नाम से जानते थे । यहाँ पर स्थित कुमारीदेवी का मंदिर
उल्लेखनीय है ।
कपिलवस्तु- शाक्यों कि राजधानी तथा बौद्ध धर्म के प्रवर्तक
महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध कपिलवस्तु उत्तर प्रदेश के बस्ती
जिले के उत्तर में नेपाल की तराई में स्थित है ।
कल्याणी- कर्नाटक राज्य के बीदर जिले में स्थित यह स्थल
कल्याण के चालुक्यों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था । चालुक्य नरेश सोमेश्वर
प्रथम के शासनकाल में इस नगर की गणना अन्य समृद्धशाली नगरों में की जाती थी ।
कालांतर मे 1190 में देवगिरि के यादव द्वारा चालुक्य वंश का अन्त कर दिये जाने से
कल्याणी का महत्व कम होता गया । यहाँ के किले में उत्कीर्ण मुहम्मद बिन तुगलक के
दो अभिलेख, जिनमे कल्याणी को दिल्ली सल्तनत का एक महत्वपूर्ण
अंग माना गया हैं, प्राप्त हुये है ।
कांचीपुरम्- वर्तमान में कांजीवरम् के नाम से प्रसिद्ध दक्षिण
भारत का यह प्राचीन शहर चेन्नई के निकट स्थित है । प्राचीन काल का यह महत्वपूर्ण
तीर्थस्थल हिंदुओं की 7 पवित्र नगरियों मे से एक है । 7वीं शताब्दी में कांची जैन
धर्म का प्रमुख केन्द्र बनी । वस्तुत: पल्लवों की राजधानी,
कांची यहाँ के प्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर और बैकुंठ पेरूमाल मंदिर के कारण विख्यात
है । इसके अलावा यह पल्लवों के प्रमुख शिक्षा केन्द्र के रूप में भी विख्यात रहा
है । संस्कृत की महान विभूतियाँ-भारवि एवं दण्डी यहीं निवास करते थे ।
कालीबंगा- सैन्धव सभ्यता का यह प्रसिद्ध शहर राजस्थान के
गंगानगर जिले में स्थित है । घग्घर नदी के किनारे स्थित कालीबंगा में दो टीले मिले
हैं । पूर्वी टीले की सभ्यता हड़प्पा युगीन थी । यहाँ प्रांत अनेक ईटों के चबूतरों
के शिखर पर हवनकुंडों के होने के साक्ष्य मिले है । यहाँ पर भवनों के अवशेषों से
स्पष्ट होता है कि ये कच्ची ईटों से बने थे । कालीबंगा मे प्राक सैंधव संस्कृति कि
सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत का साक्ष्य है ।
कुशीनगर- आजकल कसिया के नाम से जाना जाने वाला यह शहर उत्तर प्रदेश के
देवरिया जिले में स्थित है । बौद्ध धर्म के महान प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का
महापरिनिर्वाह यहीं हुआ था । यहीं पर कुशीनगर के मल्लों ने बुद्ध के अवशेषो पर एक
स्तूप का निर्माण करवाया था । मौर्य सम्राट अशोक के आठवें शिलालेख के अनुसार उसने
यहाँ के एक स्तूप का पुनर्निर्माण करवाया था । कनिष्क ने बिहारों का निर्माण
करवाया एवं गुप्त सम्राट कुमारगुप्त के एक श्रेष्ठि हरिबल ने परिनिर्वाण चैत्य में
महात्मा बुद्ध की 20 फुट ऊंची मूर्ति निर्मित करवायी थी ।
कौशाम्बी- उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद से 32 मील दूर यमुना नदी
के बायें किनारे पर स्थित यह नगरी कुशाम्ब द्वारा स्थापित की गई थी । बुद्ध काल
में यह नगरी वत्स देश की राजधानी थी । कौशाम्बी के सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी घोषित ने
बुद्ध के निवास हेतु घोषिताराम नामक एक विहार का निर्माण करवाया था । अशोक ने इसी
घोषिताराम के पास एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया है ।
खजुराहो- 10वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य चन्देल शासकों
द्वारा निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में
स्थित है । खजुराहो में स्थित मंदिरों की संख्या 85 मानी जाती है किन्तु वर्तमान
में 30 मंदिरों के ही अवशेष बचे है । ये मंदिर वैष्णव,
शैव, शाक्त और जैन सभी धर्मों से संबंध रखते है । इन मंदिरों की एक
खास विशेषता है कि इनमें कामोतेजक कला का प्रदर्शन किया गया है । इसके अलावा इन
मंदिरों कि एक उल्लेखनीय विशेषता है इनका ऊंचे चबूतरे पर बने होना ।
गंगैकोंडचोलपुरम्- चोलवंशीय शासक राजेन्द्र चोल द्वारा स्थापित यह
नगर तमिलनाडु के त्रिचिनापल्ली जिले में स्थित है । 1014 ई. में राजेन्द्र चोल ने
इसे अपनी राजधानी बनाया । कालांतर में यहाँ पर 1025 ई. में राजेन्द्र चोल ने एक
मंदिर का निर्माण करवाया ।
गया- बिहार में स्थित इस नगरी की गणना पवित्र नगरियों
में की जाती है । यह नगर हिन्दुओं द्वारा पितरों को पिंडदान किये जाने के लिए
प्रसिद्ध है । यहीं पर महात्मा बुद्ध को सम्बोधि प्राप्ति हुई थी । अशोक ने अपने
शासन के दसवें वर्ष में इस स्थान की यात्रा की थी ।
ग्वालियर- मध्य प्रदेश का यह प्रसिद्ध शहर ऊंची पहाड़ी पर बने
सुदृढ़ किले के लिए प्रसिद्ध है । मुगल सम्राट अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतज्ञ
तानसेन यहीं का निवासी था । सास-बहू का मंदिर ग्वालियर दुर्ग का विशेष ऐतिहासिक
स्मारक है, जो कि काछवाहा नरेश महिपाल द्वारा बनवाया गया था ।
चंपा- बिहार का यह प्राचीन शहर वर्तमान में भागलपुर के
नाम से प्रसिद्ध है । वस्तुत: चंपा षोडश महाजनपद के अंग राज्य कि राजधानी थी । जैन
धर्म के 12वें तीर्थकर वासुदेव कि जन्म स्थली यही थी ।
चंहुदड़ो- मोहनजोदड़ों के दक्षिण में स्थित चंहुदड़ो कि खोज
सर्वप्रथम 1931 में एन.जी. मजूमदार द्वारा कि गई थी । सैन्धव सभ्यता के इस केन्द्र
का एक महत्व इस बात में है कि यहाँ पर गुरिया निर्माण हेतु एक कारखाने के अवशेष
मिले है ।
चिदम्बरम्- चोलों कि राजधानी के
रूप में प्रसिद्ध यह नगरी चेन्नई के दक्षिणी भाग में स्थित है । स्थापत्य कला के
क्षेत्र में यहाँ निर्मित मंदिर अपनी सुन्दरता एवं भव्यता के लिए उल्लेखनीय है । नटराज
मन्दिर यहाँ का विख्यात मन्दिर है ।
जयपुर- 1721 में कछवाहा शासक सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित
यह नगर वर्तमान में राजस्थान की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है । साधारणतया इस नगर
की पहचान गुलाबी रंग से की जाती है । यहाँ की इमारतें में दीवान-ए-खास,
दीवान-ए-आम, चन्द्रमहल, गोविन्द देवरजी का मन्दिर उल्लेखनीय है । इसके
अतिरिक्त जयसिंह द्वारा बनवाया गया नाहरगढ़ दुर्ग एवं हवा महल व प्रसिद्ध है ।
जूनागढ़- गुजरात के इस प्राचीन नगर में गुप्त सम्राट
स्कन्दगुप्त का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि सम्राट स्कन्दगुप्त
(455-461) ने म्लेच्छों से युद्ध किया था । इस अभिलेख में सर्वाधिक उल्लेखनीय बात
यह है कि इसमें प्रथम बार विष्णु के साथ लक्ष्मी की उपासना का उल्लेख हुआ है ।
जौनपुर- फिरोजशाह तुगलक द्वारा स्थापित यह नगर उत्तर प्रदेश
में गोमती नदी के किनारे स्थित है । जौनपुर मुस्लिम विधा के केन्द्र के रूप में
माना जाता है । यही कारण है कि जौनपुर ‘शिराज-ए-हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता
है ।
झांसी- उत्तर प्रदेश का यह मध्यकालीन नगर रानी लक्ष्मीबाई
के कारण विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इन्होंने 1857 में हुए प्रथम स्वतन्त्रता
आंदोलन में हिस्सा लिया और बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई । ओरछा नरेश
वीर सिंह बुन्देला द्वारा 17वीं सदी में बनवाया यह दुर्ग उल्लेखनीय है ।
तराइन- तराइन पृथ्वीराज चौहान एवं मुहम्मद गोरी के बीच हुए
युद्ध के लिए प्रसिद्ध है । यह युद्ध इतिहास के पन्नों में तराइन के युद्ध के नाम
से प्रसिद्ध है जो कि दो बार हुआ था- प्रथम बार 1191 में और द्वितीय बार 1192 में
।
तक्षशिला- पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित तक्षशिला
प्राचीन काल में गांधार महाजनपद कि राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है । इस नगर स्थापना भारत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर किया था । यह स्थान
शिक्षा केंद्र के रूप में भी विख्यात था । यहाँ पर कोशल के राजा प्रसेनजित,
राजवैध जीवक, चाणक्य तथा वसुबंधु आदि ने शिक्षा प्राप्त की थी ।
ताम्रलिप्ति (तामलुक)- पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में स्थित वर्तमान
तामलुक ही प्राचीन काल में ताम्रलिप्ति के नाम से जाना जाता था । यह पूर्वी भारत
का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था किन्तु व्यापारिक बन्दरगाह होने के साथ ही ताम्रलिप्ति
संस्कृति का भी प्रमुख केन्द्र था । यहाँ फहयान, हेनसांग तथा इत्सिंग आदि
ने शिक्षा प्राप्त की थी ।
तुगलकाबाद- दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार से लगभग 3 किलोमीटर
की दूरी पर गयासुद्दीन तुगलक ने इस शहर की नींव रखी और इसे ही अपनी राजधानी बनाया
। स्थापत्य कला की दृष्टि से तुगलकाबाद में अब केवल अवशेष ही रह गये हैं । इनमें
से मुख्य है- तुगलक द्वारा बनवाया गया यहाँ का किला, राजमहल एवं तुगलक का
मकबरा ।
टोपरा- पंजाब में अम्बाला के निकट बसे इस शहर में अशोक
द्वारा स्थापित सप्त शिलालेख उत्कीर्ण एक स्तम्भ फिरोजशाह की लाट के नाम से
प्रसिद्ध है ।
त्रिचरापल्ली- प्राचीन समय में त्रिचरापल्ली के नाम से विख्यात
यह नगर चेन्नई से 250 किमी. दूर कावेरी नदी के किनारे स्थित है । पल्लव शासकों
द्वारा बनवाया गया यहाँ का दुर्ग, सौ स्तम्भ युक्त मंडप और अनेक गुहा मंदिर यहाँ की
शान है ।
थानेश्वर- प्राचीन काल में श्रीकंठ के नाम से जाना जाने वाला
यह नगर वर्तमान में थानेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है । यह थानेश्वर के नाम से भी
जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘शिव का पवित्र स्थान’ । 1014 ई. में यह नगर
महमूद गजनवी द्वारा बुरी तरह से लूट लिया गया । इतना ही नहीं,
महमूद वापस जाते समय थानेश्वर के प्रख्यात चक्रस्वामी की प्रतिमा को भी अपने साथ
गजनी ले गया ।
दशपुर- मालवा स्थित दशपुर गुप्तकाल के प्रसिद्ध नगरों में
गिना जाता है । गुप्त सम्राट कुमारगुप्त के शासन काल का प्रसिद्ध अभिलेख यहीं से
प्राप्त हुआ है जिससे यह ज्ञात होता है कि लाट देश के रेशम के व्यापारी यहाँ आकार
बसे और यहीं पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया ।
द्वारका- महाभारत, हरिवंशपुराण, भागवतपुराण, शिशुपाल वध, जातक ग्रन्थों तथा उत्तराध्ययन सूत्र में उल्लिखित
यह नगर गुजरात के पश्चिम तट पर स्थित है । द्वारका वस्तुत: श्रीकृष्ण की राजधानी
के रूप में विख्यात है ।
दिल्ली- यह प्राचीन नगर वर्तमान में भारत की राजधानी है । अधिकांश
विद्वान इसकी पहचान महाभारत ग्रन्थ में उल्लिखित इंद्रप्रस्थ की स्थापना पांडवों
ने की थी । दिल्ली का वर्णन भारतीय इतिहास में अनेक राजवंशो की राजधानी के रूप में
मिलती है । दिल्ली के नाम से शहर के प्रथम संस्थापक चौथी सदी
के ‘अनंगपाल तोमर’ को माना जाता है । 12वीं सदी में इस पर चौहनों का
शासन था । तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्म्द गोरी का दिल्ली पर अधिकार हो गया ।
कालांतर में दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश ने इसे सल्तनत की स्थायी राजधानी
बनाया । 1912 में अंग्रेजों ने दिल्ली को देश की राजधानी बनाया ।
देवगढ़- गुप्तकालीन ऐतिहासिक मंदिरों के लिए विख्यात देवगढ़
झांसी में ललितपुर के पास बेतवा नदी के किनारे बसा है । मंदिरों में यहाँ का
दशावतार मंदिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है, जो कि पूर्ण रूप से वैष्णव धर्म के प्रति आस्था
व्यक्त करता है । इस मंदिर में शिखर का प्रयोग भारतीय मंदिर निर्माण शैली में
प्रथम माना जाता है ।
दौलताबाद- प्राचीन काल में देवगिरि के नाम से विख्यात यह नगर
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है । मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे दौलताबाद का
नाम दिया । मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाने कि योजना बनाई,
किन्तु उसकी यह योजना बुरी तरह असफल रही । कालांतर में मुगल सम्राट अकबर ने इसे
मुगल साम्राज्य का अंग बना लिया ।
धारा- परमार शासक राजा भोज की राजधानी तथा शासनकाल के
समय विधा एवं कला का प्रमुख केन्द्र धारा मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित
है । यहाँ का विधालय ‘सरस्वती कण्ठाभरण’, जो वर्तमान समय में
भोजशाला के नाम से विख्यात है, विधा एवं कला का जीता जागता प्रमाण है ।
नागार्जुनकोंडा- महायान बौद्ध धर्म के प्रख्यात आचार्य नागार्जुन
के नाम पर कहा गया नागार्जुनकोंडा हैदराबाद से 100 मील दक्षिण पूर्व में स्थित है
। प्रथम शताब्दी ई.पू. में यहाँ सातवाहनों का शासन था । सातवाहन नरेश हाल ने पर्वत
के शिखर पर एक विहार का निर्माण भी करवाया था । विहार के अलावा यहाँ से एक स्तूप
और दो चैत्य के भी अवशेष मिलते है ।
पाटलिपुत्र- बिहार स्थित पाटलिपुत्र की पहचान वर्तमान समय मैं
पटना से की जाती है । मगध की राजधानी पाटलिपुत्र स्थानीय शासन व्यवस्था के लिए
प्रसिद्ध थी । मौर्यों के शासनकाल मैं तो यह बौद्ध धर्म का मुख्य केन्द्र बिन्दु
भी रहा । अशोक ने यहाँ बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दो प्रस्तर स्तम्भ भी स्थापित
करवाया था । कालान्तर मैं पाटलिपुत्र ने गुप्तों, कण्वों एवं शुंगों की भी
राजधानी होने का गौरव प्राप्त किया ।
पानीपत- इतिहास के पन्नों पर पानीपत की प्रसिद्धि यहां पर
हुए तीन युद्धों के कारण हैं । हरियाणा के करनाल जिले में स्थित पानीपत में तीन
युद्ध लड़े गये । प्रथम युद्ध 1526 में इब्राहीम लोदी और बाबर के बीच हुआ,
जिसमे बाबर विजयी रहा । द्वितीय युद्ध 1556 में अफगान शासक आदिलशाह सूर के सेनापति
हेमू और अकबर के बीच हुआ, जिसमें अफगान को पराजय का मुंह देखना पड़ा । तृतीय
युद्ध 1761 में अहमदशाह अब्दाली और शाह आलम II
के सहायक मराठों के बीच हुआ,
जिसमें मराठा पराजित हुए । यहां पर स्थित इब्राहीम लोदी का मकबरा,
बाबर द्वारा बनवाया गया । कालीबंगा का तालाब एवं हुमायूं द्वारा निर्मित फतेह
मुबारक चबूतरा आदि यहां के दर्शनीय स्थल है ।
पालम्पेट- मध्यकालीन मंदिरों के लिए विख्यात यह स्थल
आन्ध्रप्रदेश में वारंगल से 40 किमी. दूर रामप्पा झील के किनारे स्थित है । इन
मंदिरों की प्रमुख विशेषता मंदिर के बाह्य स्तम्भों के स्कन्धों से निकलती हुई
छज्जों को आधार प्रदान करती हुई बंधनियाँ हैं ।
पिपरहवा- बिहार स्थित जैन धर्म से संबन्धित यह स्थल उत्तर
प्रदेश के बस्ती जिले में नेपाल की सीमा के पास स्थित है । पिपरहवा स्थित स्तूप की
1898 ई. में खुदाई के दौरान बुद्ध की अस्थियों का एक प्रस्तर कलश,
एक स्वर्ण पट्टिका एवं एक सोने की मूर्ति प्राप्त हुई है ।
पुणे- मराठा सरदार शिवाजी तथा उसके पुत्र शम्भाजी की
राजधानी पुणे को महाराष्ट्र का शहर माना जाता है ।
पुरुषपुर- प्रथम शताब्दी ई.पू. में कनिष्क द्वारा स्थापित
पुरुषपुर पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में स्थित है । पुरुषपुर वर्तमान
काल में पेशावर के नाम से जाना जाता है । इसके अतिरिक्त कनिष्क ने भगवान बुद्ध की
अस्थियों को सुरक्षित रखने के लिए यहां विशाल स्तूप का निर्माण भी करवाया था ।
प्लासी- प्लासी 1757 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं बंगाल
के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है । यह स्थान पश्चिमी
बंगाल में भागीरथी के किनारे स्थित है ।
प्रयाग- भारतीय साहित्य में तीर्थराज कहलाने वाला एवं
भारतीय संस्कृति का जीता जागता प्रतीक यह स्थल गंगा-यमुना के संगम पर बसा है ।
प्राचीन काल से ही इसी स्थली की गणना पवित्र नगरियों में की जाती रही है । सम्राट
हर्षवर्धन प्रति पाँचवें वर्ष यहां महामोक्ष परिषद् का आयोजन कर गरीबों को लाखों
रुपये दान दे देता था । हरिषेण रचित समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति,
जिसमें उसकी दिग्विजय का वर्णन है, यहीं पर स्थित है । कालान्तर में अकबर ने प्रयाग
का नाम परिवर्तित कर इलाहाबाद रख दिया ।
फतेहपुर सीकरी- अकबर द्वारा स्थापित भारत का यह एकमात्र ‘एक्रोपोलिस’
(Fortified part of Athens in
ancient times) आगरा से लगभग 23 किमी. दूर
स्थित है । 1569-84 मेन निर्मित यह नगर कालांतर मेन अकबर की राजधानी के रूप मेन प्रसिद्ध
रहा । यहाँ निर्मित सभी उल्लेखनीय भवन- जामा मस्जिद, सलीम चिश्ती का मकबरा,
बुलन्द दरवाजा, दीवान-ए-खास, जोधाबाई का महल, बीरबल का महल,
इबादत खाना आदि लाल पत्थर से बने है । इबादत खाना को छोड़कर सभी इमारतें ज्यों की
त्यों आकर्षक बनी हुई हैं । नि:संदेह फतेहपुर सीकरी की ये इमारतें मुगलकालीन
इमारतों में सर्वोतम मनी जाती है । इसीलिए तो स्मिथ ने कहा था कि ‘फतेहपुर
सीकरी के समान न तो उससे पहले कुछ बन सका और न उसके बाद कुछ बनना संभव है । वह पत्थर
में ढाला गया एक रोमान्स है ।’ फर्गुसन का कहना है कि यह नगर उस महान सम्राट कि
परछाई है जिसने इसका निर्माण करवाया था ।
बनावली- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस स्थल से सैन्धव सभ्यता के
विस्तार का ज्ञान होता है । इस स्थल से हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन सांस्कृतिक
अवस्थाओं के अवशेष मिले है । 1973-74 में रवीन्द्र सिंह विष्ट के नेतृत्व में
खुदाई के दौरान यहां से अच्छे किस्म के जौ प्राप्त हुए है । इसके अतिरिक्त यहां से
मिट्टी के बर्तन, गोलियां, मनके, मनुष्यों एवं पशुओं की मूर्तियां,
चर्ट के फलक, कार्नीलियन के मनके, तांबे के बाणाग्र आदि भी
प्राप्त हुए हैं ।
बांसखेड़ा- उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से लगभग 25 किमी. दूर
स्थित इस स्थल से 1894 में हर्षवर्धन का एक ताम्रदानपट्ट लेख मिला है,
जिसमें हर्ष द्वारा मर्कट सागर गांव के दो ब्राह्मणों बालचंद्र एवं भट्टस्वामी को
दान देने का उल्लेख है । इसके अलावा इस लेख की अन्य विशेषता यह है कि इस लेख में
प्रशासन सम्बन्धी बातों की विस्तृत जानकारी दी गई है ।
बादामी- बीजापुर (कर्नाटक) जिले में स्थित यह नगर
चालूक्यों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था । वस्तुत: बादामी को गुफा चित्रों के
लिये याद किया जाता है । यहां चार गुफ़ाएं है जिनमें तीन ब्राह्मण धर्म से और चौथी
जैन धर्म से सम्बन्ध रखती है । ब्राह्मण गुफाओं का सर्वप्रथम उदाहरण बादामी से ही
मिलता है ।
बीकानेर- राव जोधा के पुत्र बिका द्वारा स्थापित यह प्राचीन
नगर राजस्थान में स्थित है । यहां का किला महाराज राजसिंह द्वारा 1594 में बनवाया
गया था ।
बीजापुर- युसुफ आदिलसाह द्वारा स्थापित बीजापुर कर्नाटक में
शोलापुर से 68 किमी. देर भीमा एवं कृष्णा नदी के दोआब में स्थित है । बीजापुर
तत्कालीन समय में शिक्षा के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । बीजापुर
पुस्तकालय की चन्द किताबें ब्रिटिश संग्रहालय में आज भी सुरक्षित हैं । स्थापत्य
कला क क्षेत्र में यहां की प्रसिद्ध इमारतों में इब्राहीम रोजा और गोल गुंबज मुख्य
हैं । इब्राहीम रोजा इब्राहीम आदिलसाह का मकबरा है जिसकी मुख्य विशेषता पत्थर की
सूक्ष्म कारीगरी एवं तक्षण शिल्प कला में झलकती है । गोल गुंबज मुहम्मद आदिलशाह का
मकबरा है । संसार के इस सबसे गुंबज का निर्माण 1660 में हुआ था ।
बूंदी- राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित बूंदी की
स्थापना राव देवाजी ने 1898 में की । बूंदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए
प्रसिद्ध है ।
बेदसा- बड़गांव के निकट स्थित बेदसा में बौद्ध गुफाओं एवं
कार्ले-भाजा से मिलते हुए चैत्यों के अवशेष प्रकाश में आये हैं ।
बोधगया- प्राचीन काल में उरुविल्य या उरुवेला के नाम से
विख्यात बोधगया गया नगर से 6 किमी. दूर निरंजना नदी के किनारे स्थित है । महात्मा
बुद्ध को संबोधी की प्राप्ति इसी स्थान पर हुई थी । अशोक ने यहां एक विहार का
निर्माण करवाया था । इसके अतिरिक्त सिंहल द्वीप के नरेश मेघवर्मन ने भी
समुद्रगुप्त की अनुमति से यहां एक बौद्ध विहार का निर्माण करवाया था ।
भाजा- बौद्धकालीन गुफाओं के लिए प्रसिद्ध भाजा
महाराष्ट्र के मुम्बई शहर से कुछ दूर पर स्थित है । यहां स्थित गुफाओं की कुल
संख्या 22 है, जिनम्न विहार, चैत्यगृह,
स्तूप सभी सम्मिलित है ।
भुवनेश्वर- वर्तमान समय में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर
प्राचीन समय में उत्कल की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था । केसरी वंशीय शासक
द्वारा यहां निर्मित मंदिरों की कुल संख्या लगभग 500 है । इन मंदिरों में
परशुरामेश्वर मंदिर, राजा-रानी का मंदिर एवं लिंगराज मंदिर विशेष रूप
से उल्लेखनीय है ।
मथुरा- उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के तट पर स्थित मथुरा
बौद्ध काल में शूरसेन जनपद की राजधानी के रूप में विख्यात था । भगवान श्रीकृष्ण से
संबन्धित होने के कारण यह नगरी आज भी सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व बनाए हुए है ।
मदुरै (मदुरा)- पाण्ड्य राजाओं की राजधानी एवं दक्षिण भारत का यह
प्राचीन नगर तमिलनाडु के दक्षिण में बैगाई नदी के दाहिने तट पर स्थित है । मदुरा
को कदम्ब वन के नाम से भी जाना जाता है । सूती वस्त्रों तथा मोतियों के अतिरिक्त
मदुरा देवालय, प्रशस्त राजमार्ग, सभा भवनों,
मंदिरों आदि क लिए प्रसिद्ध है । मंदिरों में मीनाक्षी मन्दिर सर्वाधिक उल्लेखनीय
है जिसके संस्थापक मदुरै नरेश तिरुमल्लई नायक माने जाते हैं ।
मान्यखेट- कर्नाटक का यह छोटा सा स्थल राष्ट्रकूटवंशीय
राजाओं की राजधानी के रूप में विख्यात था । कालांतर में यह बहमनी शासकों द्वारा लूट
लिया गया और बहमनी राज्य का हिस्सा बन कर रह गया । ध्यातव्य है कि अमोघवर्ष
(राष्ट्रकूट शासक) के शासनकल में यह स्थान जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था जहां
जिनसेन, महेन्द्र, गुणभद्र तथा पुष्पदत्त जैसे विद्वान निवास करते थे
।
मामल्लपुरम्- पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन द्वारा चेन्नई से लगभग 48
किमी. दूर स्थापित यह स्थल वर्तमान में महाबलीपुरम् के नाम से विख्यात
है । यहां पर विकसित शैली मामल्लशैली के नाम से जानी जाती है । पल्लव मन्दिर
निर्माण कला का सुंदरतम् उदाहरण नरसिंहवर्मन-II द्वारा बनवाया गया यहां
का शोर मन्दिर है ।
मोहनजोदड़ों- 1992 में राखाल दास बनर्जी द्वारा खोजा गया
मोहनजोदड़ों (मृतकों का टीला) पंजाब के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है ।
यहां दुर्ग के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थलों में एक विशाल स्नानागार एवं एक विशाल
अन्न भण्डार मिला है जिससे संभवतः मोहनजोदड़ों में 20 स्तम्भ युक्त एक भवन होने का
प्रमाण मिलता है । मोहनजोदड़ों कि सभी फ़र्शों एवं दीवारों कि जुड़ाई जिप्सम से की
गयी है ।
रंगपुर- सैन्धव सभ्यता से संबन्धित यह स्थल गुजरात के
काठियावाड़ प्रायद्वीप में मादर नदी के निकट स्थित है । 1953-54 में एस.आर. राव के
नेतृत्व में उत्खनन के दौरान यहां से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग,
नालियाँ, मृद् भाण्ड , बाट, पत्थर के फलक आदि नष्ट कर दिया गया ।
विजयनगर- इस राज्य की नींव 1336 में तुंगभ्रदा नदी के
किनारे हरिहर एवं बुक्का द्वारा राखी गई । मध्यकाल का यह प्रसिद्ध नगर कालांतर में
बहमनी मुस्लिम शासकों द्वारा नष्ट कर दिया गया ।
विदिशा- हाथी दांत के लिए प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के भिलसा
शहर से लगभग 2 मील दूर स्थित वर्तमान बेसनगर ही प्राचीन विदिशा है । मौर्य सम्राट
अशोक शासक बनने से पहले विदिशा का ही प्रांतीय शासक था ।
वेल्लुर- कर्नाटक स्थित वेल्लुर मध्य काल में होयसल राज्य
की राजधानी के रूप में विख्यात था । 1117 में होयसलवंशीय नरेश जटिंग विष्णुवर्धन
द्वारा बनवाया गया यहां का चेत्राकेशव मन्दिर इसकी प्रसिद्धि का सर्वप्रमुख कारण
है ।
श्रवणबेलगोला- कर्नाटक के हसन जिले में स्थित श्रवणबेलगोला को
जैन धर्म के मुख्य केन्द्र के रूप में याद किया जाता है । जैन अनुश्रुति के अनुसार
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने सन्यास लेने के उपरान्त अपने जीवन के शेष दिन यहीं पर
व्यतीत किया था । जैन तीर्थकर बाहुबली की मूर्ति, जो गोमतेश्वर के नाम से
प्रसिद्ध है, गंग शासकों द्वारा यहीं पर स्थापित की गयी है ।
साकेत- उत्तरी कोशल की राजधानी एवं जातक ग्रन्थों में
उल्लेखित इस स्थल की पहचान कुछ लोग अयोध्या से करते है,
परन्तु अयोध्या और साकेत दो अलग-अलग स्थान है ।
सारनाथ- प्राचीन काल में ऋषिपतन एवं मृगदाव नाम से
प्रसिद्ध वर्तमान समय का सारनाथ उत्तर प्रदेश में वाराणसी से करीब 7 किमी. दूर
स्थित है । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने यहां पर धर्मचक्र प्रवर्तन
किया था । अशोक द्वारा बनवाया गया यहां का प्रस्तर स्तम्भ,
जो वर्तमान में भारत का राजचिन्ह है, मौर्यकालीन कला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता
है । स्तंभों के शीर्ष पर बनी सिंह की मूर्तियां मौर्यकालीन मूर्तियों में
सर्वाधिक प्रशंसनीय है ।
सुत्कागेनडोर- दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्क नदी के किनारे स्थित सुत्कागेनडोर
की खोज 1927 में आरेल स्टाइन ने की थी । सैन्धव सभयता के इस क्षेत्र से हड़प्पा
संस्कृति की परिपक्व अवस्था के अवशेष मिलते है । समुन्द्र तट पर अवस्थित यह स्थान
संभवतः एक बन्दरगाह था ।
सुरकोतड़ा- गुजरात के कच्छ जिले में स्थित यह स्थान घोड़ों के
अवशेष मिलने के कारण प्रसिद्ध है । इस स्थल की खोज 1964 में जगपति जोशी के नेतृत्व
में की गयी । यहाँ मिले अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ की संस्कृति
बहुद हद तक परिपक्व थी ।
सोमनाथ- अनेक वर्षों से शिवालय के लिए प्रसिद्ध सोमनाथ
गुजरात के प्रभासपट्टन समुन्द्र तट पर स्थित है । गुजरात के चालूक्यों द्वारा
बनवाया गया सोमनाथ का मंदिर धन सम्पदा के लिए प्रसिद्ध था किन्तु 1026 में यह
मंदिर महमूद गजनवी द्वारा न केवल लूटा गया वरन् इसे नष्ट भी कर दिया गया । पुनः इस
मंदिर का जीर्णोंद्वार गुर्जर नरेश भोजदेव ने कराया लेकिन कालान्तर में अलाउद्दीन
खिजली के सेनापति उलुग खां और नसरत खां ने इस मंदिर को पुनः नष्ट किया । इस प्रकार
यह मंदिर अनेक बार बिगड़ा और बना ।
हड़प्पा- पाकिस्तान के शाहीवाल (माण्टगोमरी) जिले में रावी
नदी के तट पर स्थित इस स्थल की खोज 1921 में दयाराम साहनी द्वारा की गई । यहां के
उत्खनन में दुर्ग एवं 6-6 की दो पक्तियों में निर्मित अन्नागार के अवशेष प्राप्त
हुए है । हड़प्पा में दो प्रमुख टीले भी मिले है जिसमें से पश्चिमी टीले में दुर्ग
एवं पूर्वी टीले में नगर के अवशेष मिले है । आधुनिक समय के कुछ विद्वान सैन्धव
सभ्यता के इस प्रमुख स्थल के नाम पर ही सैन्धव सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से
पुकारते है क्योंकि सैन्धव सभ्यता के इसी स्थल की खुदाई सर्वप्रथम की गयी है ।
No comments:
Post a Comment
Leave a Reply